कितनी होशियारी के साथ जनता को मूर्ख बनाया जाता है इसका यह जीता जागता उदाहरण है........ दो दिन पहले की खबर है कि हैदराबाद में जोमैटो का फूड डिलीवरी बॉय मोहम्मद अकील 9 किलोमीटर साइकिल चलाकर खाना पहुंचाने आया. जिसे उसने खाना पहुंचाया, उसका नाम रॉबिन है यहां रॉबिन ने गौर किया कि अकील 20 मिनट तक करीब 9 किलोमीटर साइकिल चलाकर उनके घर तक पहुंचा था.तो उसने सोशल मीडिया के जरिये रुपये जुटाकर उसे एक बाइक गिफ्ट कर दी.
पब्लिक इतनी बेवकूफ है कि इस पे भी वाह वाह करेगी
अच्छा ! एक बात बताइये कि क्या आपने कभी यह खबर पढ़ी कि ऐप-आधारित सेवा कंपनियों जैसे ओला, उबेर, उबेर ईट्स, और ज़ोमेटो में काम कर रहे डिलवरी बॉय की, ड्राइवर की अन्य देशों में ऐसे ही स्टार्ट अप के बीच सबसे खराब स्थिति है, वे बहुत मुश्किल से अपना खर्च चला पा रहे हैं ?
नही ऐसी खबरें आपको नही दिखाई जाएगी न ही मीडिया बताएगा न ही कोई अखबार ?
इंडिया स्पेंड में 2018 में क्वार्ट्ज इंडिया की रिपोर्ट में कहा गया है कि इन स्विगी जोमैटो ओला और उबर का एकमात्र मानदंड पर समानता है और वह है, वेतन- “सबसे कम स्थानीय मजदूरी का भुगतान, जिसमें श्रमिकों द्वारा लगाए गए रोजगार की लागत भी शामिल है”।
कायदे से यह जो बाइक रॉबिन ने मोहम्मद अकील को खरीद कर दी है यह जोमैटो को खरीद कर नही देनी चाहिए थी ????...... लेकिन नही यह बात आपके दिमाग मे आएगी ही नही क्योंकि उन्होंने अपने प्लेटफार्म को ऐसा ही सेट किया है
इस बिजनेस में अब जो रकम लगा है वो डूब रहा है, चाहे वह बाइक खरीदकर डिलेवरी करने वाला हो या कोई छोटा मोटा रेस्टोरेंट चलाने वाला......... कल बीबीसी में चीनी युवाओं में बढ़ती हुई निराशा को लेकर एक लेख छपा है इसमे एक चीनी युवा सन के का दृष्टांत दिया है
'साल 2018 में 'सन के' ने अपना रेस्तरां कारोबार शुरू किया. लेकिन जल्द ही उन्हें ये अहसास हुआ कि इस धंधे पर बड़े ब्रैंड्स और डिलिवरी प्लेटफॉर्म्स का दबदबा है और इस कारोबार में उनके आने में देर हो गई है.सन के बताते हैं, "डिलिवरी ऐप्स पर दूसरे आउटलेट्स के साथ प्रतिस्पर्धा करने के क्रम में मेरे बिज़नेस पार्टनर और मुझे अपनी जेब से डिलिवरी फी भरनी पड़ती थी ताकि ग्राहकों को डिस्काउंट दिया जा सके. और इन सब के बीच बड़े ब्रैंड्स ही पैसा बना पा रहे थे. साल बिज़नेस करने के बाद सन के को इस कारोबार में 10 लाख यूआन (भारतीय मुद्रा में 1,12,81,759 रुपए) का घाटा हो चुका था. आख़िरकार पिछले साल उन्होंने ये धंधा समेट लिया'
अब चीनी युवा इन परिस्थितियों से निराश ओर हताश महसूस करते हैं
लगभग यही स्थिति भारत मे आ गयी है कुछ साल पहले तक यह फिर भी ठीक था लेकिन यदि आपको इनमे कुछ कमाना है तो आपको ट्रिप की संख्या बढ़ानी होगी, आपको कम से कम दिन के 12 -13 घण्टे काम करना होगा, ओर न आपकी छुट्टी मिलेगी, न काम के घंटे की सीमा तय होगी, न नौकरी की सुरक्षा और न ही कोई स्वास्थ्य लाभ जैसी कोई स्कीम है......
इस बारे में कोई बात नही करता बस ये खबर आती है कि किसी ग्राहक को डिलेवरी बॉय ने पंच मार दिया , किसी को क्राउड फंडिंग से बाइक गिफ्ट मिल गयी, किसी ने तीन लाख की बाइक खरीद ली........
समाज मे यह जो उबराइजेशन हो रहा है इसके परिणाम को ठीक से समझने की जरूरत है लेकिन बस हवा हवाई बातों से काम चलाया जा रहा है
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