आज मन कर रहा है कि कुछ ज्यादा कड़वा बोला जाए और अपने सहित भारत के विपक्षी दलों जिसमे कांग्रेस सर्वोपरि है इनकी आलोचना की जाए क्योंकि हम नागरिकों के लिए अपने स्वार्थ और नेताओ के लिए अपनी कुर्सी तथा राजनीति ज्यादा अहमियत रखती हैं बनिस्बत देश के।
सेना की प्रशंसा और यदि कोई शहीद हो जाए तो उसके परिवार को सुविधाएं उपलब्ध होती हैं लेकिन हम उन्हें भी जानते है जो देश के लिए जान देने जाते है और जानते है कि यदि कुछ हो गया तो कोई पहचानेगा भी नहीं।
मुद्दे की बात पर आते हैं और याद करे 11 सितम्बर 2001 जब अमेरिका की ट्विन टॉवर ध्वस्त हुई थी।
उससे पहले रूस को पराजित करके अफगानिस्तान पर तालिबान ने अपनी सरकार बना ली थी तथा सख्ती से अफीम की खेती बन्द कर दी थी।
इसके साथ ही तालिबान ने अपने देश के सभी खनिज उत्पाद अपने कब्जे में लेकर विदेशी कम्पनियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया था।
ट्विन टॉवर हादसे का आरोप उसी अल कायदा पर लगा जिसे खुद पेंटागन ने खड़ा किया था।
यूएस के एक आदेश पर जनरल मुशर्रफ ने घुटने टेक दिए तथा केवल 48 घंटो में अमेरिकन मेरिन तथा उसकी फोर्सेज नाटो के 48 देशों के साथ अफ़गान धरती पर थी।
19 साल की लंबी लड़ाई के बाद श्रीमान ट्रंप जी ने अपनी सेनाएं निकालने का वचन दिया तथा उसपर अमल भी शुरू कर दिया।
आज हमारे सामने एक ओर चीन की सेना खड़ी है जिसने भारतीय क्षेत्रो पर कब्ज़ा किया हुआ है।
दूसरी ओर आशंका जताई जा रही है कि अमेरिका अपने सैनिकों की तैनाती भारतीय क्षेत्रो में करने जा रहा है जैसा कि माइक पॉन्पियों ने संकेत दिए हैं।
सीधे शब्दों में बोले तो भारत भूमि पर दो अपवित्र बूट धड़धड़ाते हुए हमे रौंदने को तैयार हैं।
सुरक्षा और सेना की जितनी जानकारी मुझे है उसके आधार पर बिना किसी संदेह के कह सकता हूं कि हमारी सेना जब चाहे चीन की सेना को उसके घर में घुसा सकने में सक्षम हैं।
यदि नेतृत्व की नियत पर शक न हो और शत्रु सामने हो तो हमारा एक सिपाही सवा लाख से लडने की क्षमता और हिम्मत रखता है।
किन्तु यदि हमने किसीको खुद मित्रता के नाम पर अपने घर में घुसा लिया तो उसका क्या होगा ?
कांग्रेस प्रवक्ता बीजेपी के भ्रमजाल में ही घूमते रहते हैं और उनके फ़िज़ूल के सवालों पर स्पष्टीकरण या आरोप प्रत्यारोप लगाते रहते है।
चलो फिर हम ही शुरू करते हैं क्योंकि देश हमारा पहले है, नेताओ का बाद मे हैं, यदि ये ईमानदार होते तो सियासत छोड़ देते लेकिन पार्टी न छोड़ते।
अधिक से अधिक अमेरिकी अड्डों के विरोध में सरकार से सवाल करे, अपनी राजनीतिक पार्टी के नेताओं और प्रवक्ताओं पर दबाव बनाए कि वो सम्भावित किसी भी देश के सैनिकों को भारत में अपने अड्डे बनाने देने का विरोध करे।
जो आपका साथ नहीं देता उसको देश के सामने नंगा करे, उस पार्टी को जलील करने से न हिचकिचाए क्योंकि देश पार्टी से बहुत बड़ा होता है।
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