साकेत गोखले अक्सर कमाल करते हैं।
पूरी कहानी को यूं समझें-
दो विभाग संभाल रहे केन्द्रीय मंत्री हरदीप पुरी पहले आईएफएस यानी भारतीय विदेश सेवा के अफ़सर रह चुके हैं। उनकी पत्नी अम्ब लक्ष्मी पूरी भी आईएफएस थीं। ठीक है?
2006 में अम्ब लक्ष्मी जिनेवा में तैनात थीं। उस वक़्त उनकी तनख्वाह 10-12 लाख के करीब होगी। पति की भी पगार उतनी ही थी।
कहानी में ट्विस्ट तब आया, जब 2006 में स्विट्जरलैंड में 17 लाख डॉलर (करीब13 करोड़) का एक बंगला खरीदा।
2017 में मंत्री बनने के बाद पुरी साहेब ने अपने घोषणा पत्र में बंगले का ज़िक्र करते हुए जिनेवा के USB बैंक से 10 लाख 60 हज़ार स्विस फ्रांक के लोन का ज़िक्र किया है।
इसका मतलब हुआ कि अम्ब लक्ष्मी ने 4.3 करोड़ का डाउन पेमेंट किया।
कहानी में एक और ट्विस्ट तब आता है, जब 2018 में पुरी साहेब राज्यसभा को बताते हैं कि उन्हें 13 करोड़ के मकान की मौजूदा मार्केट वैल्यू नहीं मालूम। यानी नादान बलमा।
स्विस बैंकिंग नियमों के मुताबिक लोन की रकम का 20% बचत दिखाना होता है। मतलब पुरी दंपति ने 10 लाख 60 हज़ार स्विस फ्रांक के बराबर गिरवी रखा होगा।
यानी बंगला खरीदने के लिए दंपति की सालाना आय 2.4 करोड़ होनी चाहिए। साथ ही 4.8 करोड़ की बचत भी ज़रूरी होगी।
यहीं पुरी साहेब फंस गए। एक सिविल सेवा अफसर के पास 2006 में 2.4 करोड़ की सालाना आय मुमकिन है? चलिए मान भी लें कि इतना पैसा होगा।
लेकिन 4.8 करोड़ की बचत और 4.3 करोड़ का डाउन पेमेंट?
कहीं पुरी दंपति का भी स्विस बैंक एकाउंट तो नहीं?
आप सिलबट्टे को लेकर बहस कीजिए। वे देश को खोखला कर ही रहे हैं।
(कागज़ हम ही दिखाएंगे)
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